शिक्षक भर्ती और न्यायालयीय विवाद
इतिहास स्वयं को दोहराता है और मैंने इसे बहुत करीब से महसूस किया है , मैं कभी आरोप -प्रत्यारोप की भी परवाह नहीं करता हूँ और मुसीबत के वक़्त इंसान को सदैव धैर्य धारण करना चाहिए ।
माननीय सुप्रीम कोर्ट में BTC प्रशिक्षुओं ने 72825 भर्ती के ही अवशेष पदों में बीटीसी हेतु नियुक्ति की मांग की है ।
डब्ल्यूपी(सी) 102/16 के जरिये बीटीसी प्रशिक्षुओं की मंशा है कि जिन पदों पर अभी नियुक्ति नहीं हुई है वह पद इनको दे दी जाये ।
इन्होंने भारत सरकार के राजपत्र दिनांक
10-09-2012 का हवाला दिया है कि उक्त राजपत्र के जिस क्लॉज़ के तहत बीएड वालों को दिनांक 31 मार्च 2014 तक छूट मिली है छूट की शर्त संख्या तीन के तहत पैरा एक अर्थात बीटीसी आदि को नियुक्ति में वरीयता दी जायेगी ।
इस प्रकार 72825 भर्ती की प्रथम नियुक्ति का पत्र सचिव बेसिक शिक्षा परिषद् ने दिनांक 14-10-2015 को जारी किया
अतः बीटीसी को भी नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल किया जाये ।
उक्त मांग के साथ बीटीसी की याचिका सुप्रीम कोर्ट में फाइल है और स्टेट ऑफ़ यूपी को सुप्रीम कोर्ट ने कॉपी सर्व कराने को भी कहा है ।
संपूर्ण रिट का अध्ययन करने पर देखा जाये तो फिर सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही गलत हो जायेगा क्योंकि सारी प्रक्रिया ही दिनांक 31 मार्च 2014 के बाद शुरू हुई है जबकि बीएड के लिए नियुक्ति की अंतिम तिथि ही उक्त तिथि को ख़त्म हो चुकी थी ।
जबकि मुकदमा पुराना है और मुकदमा जब का है तब बीटीसी वालों की उपस्थिति ही नगण्य थी ।
जब स्टेट का सिलेक्शन रूल दिनांक 09 नवम्बर 2011 से विवादों का जीवन जी रहा है तो फिर कोई नियुक्ति स्थाई हो ही नहीं सकती है और सभी रिक्तियां अवशेष हैं ।
इस प्रकार बीटीसी की पेटिशन सुप्रीम कोर्ट से थोड़े प्रयास में ही ख़ारिज हो जायेगी और जल्द ही उक्त पेटिशन के ऐसे याचियों को परिषद् से ज्ञात करके जिनको कि नियुक्ति मिल चुकी है यदि वे अपना नाम वापस नहीं लेते हैं तो कॉस्ट भी कराया जा सकता है ।
बीटीसी के अभ्यर्थी न तो दिनांक 30 नवम्बर 2011 की विज्ञप्ति के आवेदक हैं और न ही दिनांक 7 दिसम्बर 2012
की विज्ञप्ति के आवेदक हैं ।
दिनांक 30 नवम्बर 2011 की विज्ञप्ति के क्लॉज़ 10 में लिखा है कि प्रशिक्षण प्राप्त लोगों को ही नियुक्त कर दिया जायेगा अतः बीटीसी वाले नियुक्ति प्रक्रिया में भी कोई दावा नहीं कर सकते हैं ।
यह विवाद सुप्रीम कोर्ट में बीएड वालों के बीच में पेंडिंग है अतः बीटीसी की पेटिशन स्टैंड नहीं होगी ।
भारत सरकार के राजपत्र के पैरा 3 (1) (क) में वर्णित है कि नियुक्ति के बाद छः माह का प्रशिक्षण होगा अर्थात नियुक्ति पर बेसिक शिक्षा नियमावली लागू रहेगी उसके बाद ट्रेनिंग होगी तभी मैं मुकदमा लड़ रहा हूँ ।
भारत सरकार के राजपत्र दिनांक 10 -09- 2012 की छूट शर्त संख्या पांच में लिखा है कि नियुक्ति के बाद अधिसूचना के पैरा 3 (1) (क) के अनुपालन में प्रशिक्षण अनिवार्य होगा ।
इस प्रकार जब हमारा मुकदमा हाई कोर्ट की एकल पीठ में पेंडिंग था और नये विज्ञापन के लिए आवेदन चल रहा था तो
इलाहाबाद से दिनांक 17 दिसम्बर 2012 को बीटीसी प्रशिक्षण पूर्ण करने वाले छः प्रशिक्षुओं ने याचिका संख्या रिट A 39674/12 में हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र 5013/13 दाखिल किया और दिनांक 07 दिसम्बर 2012 के विज्ञापन में आवेदन का अवसर मांगा ।
दिनांक 09 जनवरी 2013 को मै कोर्ट संख्या 38 में मौजूद था तो न्यायमूर्ति ने कहा कि बीटीसी प्रशिक्षुओं ने दिनांक 17 दिसम्बर 2012 को बीटीसी प्रशिक्षण पूर्ण किया है और जिस याचिका में इन लोग के द्वारा हस्तक्षेप की जा रही है इस याचिका में दिनांक 26-07-2012 का शासनादेश चैलेन्ज है , संशोधन प्रार्थना पत्र द्वारा नियामवली के संशोधन 15 अर्थात अकादमिक मेरिट जो कि दिनांक 31 अगस्त 2012 को अस्तित्व में आयी थी उसको अल्ट्रावायरस करने की मांग है और दिनांक 30 नवम्बर 2011 की विज्ञप्ति को परमादेश के जरिये बहाल करने की मांग है और बीटीसी प्रशिक्षु न तो उस विज्ञापन में आवेदक थे और न ही उस वक़्त योग्य थे इसलिए इनके प्रार्थना पत्र को ख़ारिज किया जाता है ।
इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट में भी बीटीसी के प्रशिक्षुओं को कोई लाभ नहीं होगा , बीटीसी टीम को मात्र शिक्षामित्रों के मुकदमे में इंटरेस्ट लेना चाहिए और उसी रिक्ति के लिए अपने दावे को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए ।
न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन ने अगली ही डेट दिनांक 16 जनवरी 2013 को उक्त याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमे कि बीटीसी द्वारा इम्लीड फाइल की गयी थी । न्यायमूर्ति ने कहा कि दिनांक 30 नवम्बर 2011 की विज्ञप्ति रूल पर नहीं थी इसलिए सरकार ने यदि रद्द कर दिया तो वह बहाल नहीं होगी क्योंकि रूल के अगेंस्ट परमादेश जारी नहीं होता है ।
नियमावली के संशोधन 15 पर कोई टिप्पणी नहीं की ।
जब मामला खंडपीठ में गया तो वहां दिनांक 30 नवम्बर 2011 की विज्ञप्ति को रूल पर पूर्ण करने का आदेश हुआ तथा संशोधन 15 निरस्त कर दिया ।
अब ये अलग बात है कि सरकार ने रूल को विज्ञप्ति पर आदेश होने के बाद भी प्रेफर नहीं दिया ।
जिसे कि मैने माननीय सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में रखा है , यदि सुप्रीम कोर्ट ने निर्णायक आदेश में संपूर्ण प्रोसेस निरस्त न किया तो मुझे या मेरी टीम से जुड़े लोग को राहत सौंप देगी।
यदि सिलेक्शन प्रोसेस निरस्त करते हैं तो फिर निर्णीत चयन के आधार से रूल को फॉलो करते हुए चयन व नियुक्ति की प्रक्रिया पूर्ण होगी ।
मेरा प्रयास है कि मुकदमा शीघ्र निस्तारित हो क्योंकि निस्तारित करना न्यायमूर्ति के लिए आसान नहीं है और उनको मेरा विरोध शांत करने में ही सरलता और सहजता होगी ।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने याची राहत के निश्चित आदेश को फॉलो करने को कहा है और न फॉलो होने की स्थिति में वजह पूंछी है तो सरकार यदि बताती है कि रिक्ति नहीं है तो फिर हम सवाल पूछेगे कि जब स्टेट के पास कोई चयन रूल ही नहीं है सब कोर्ट में पेंडिंग है तो रिक्ति कैसे भर दी गयी और जो चयन इस 72825 भर्ती में ही अपनाया गया है और याची राहत दिया गया है उसमें जो नियुक्त हैं उनसे अधिक अंक वाले अभी तक नियुक्ति नहीं पा सके हैं क्योंकि 72825 प्रोसेस में रूल न फॉलो होने से वे आवेदक होने के बावजूद भी आउट ऑफ गेम हैं और याची राहत में उनकी याचना दिनांक 7 दिसम्बर 2015 को कोर्ट में न होकर फरवरी 2016 में आप द्वारा स्वीकार है ।
अतः ये न्याय प्राप्त करने के हकदार हैं ।
इस प्रकार या तो मुकदमा निर्णीत कर दिया या फिर अभी तक बेरोजगार बैठे अधिक योग्य लोगों को भी अंतरिम राहत दी जाये जिससे कि नियुक्ति प्राप्त कर चुके अपने से कम अंक वालों के सम्मुख वे कुंठा व बेरोजगारी की पीड़ा से उबर सकें ।
इतिहास स्वयं को दोहराता है और मैंने इसे बहुत करीब से महसूस किया है , मैं कभी आरोप -प्रत्यारोप की भी परवाह नहीं करता हूँ और मुसीबत के वक़्त इंसान को सदैव धैर्य धारण करना चाहिए ।
माननीय सुप्रीम कोर्ट में BTC प्रशिक्षुओं ने 72825 भर्ती के ही अवशेष पदों में बीटीसी हेतु नियुक्ति की मांग की है ।
डब्ल्यूपी(सी) 102/16 के जरिये बीटीसी प्रशिक्षुओं की मंशा है कि जिन पदों पर अभी नियुक्ति नहीं हुई है वह पद इनको दे दी जाये ।
इन्होंने भारत सरकार के राजपत्र दिनांक
10-09-2012 का हवाला दिया है कि उक्त राजपत्र के जिस क्लॉज़ के तहत बीएड वालों को दिनांक 31 मार्च 2014 तक छूट मिली है छूट की शर्त संख्या तीन के तहत पैरा एक अर्थात बीटीसी आदि को नियुक्ति में वरीयता दी जायेगी ।
इस प्रकार 72825 भर्ती की प्रथम नियुक्ति का पत्र सचिव बेसिक शिक्षा परिषद् ने दिनांक 14-10-2015 को जारी किया
अतः बीटीसी को भी नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल किया जाये ।
उक्त मांग के साथ बीटीसी की याचिका सुप्रीम कोर्ट में फाइल है और स्टेट ऑफ़ यूपी को सुप्रीम कोर्ट ने कॉपी सर्व कराने को भी कहा है ।
संपूर्ण रिट का अध्ययन करने पर देखा जाये तो फिर सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही गलत हो जायेगा क्योंकि सारी प्रक्रिया ही दिनांक 31 मार्च 2014 के बाद शुरू हुई है जबकि बीएड के लिए नियुक्ति की अंतिम तिथि ही उक्त तिथि को ख़त्म हो चुकी थी ।
जबकि मुकदमा पुराना है और मुकदमा जब का है तब बीटीसी वालों की उपस्थिति ही नगण्य थी ।
जब स्टेट का सिलेक्शन रूल दिनांक 09 नवम्बर 2011 से विवादों का जीवन जी रहा है तो फिर कोई नियुक्ति स्थाई हो ही नहीं सकती है और सभी रिक्तियां अवशेष हैं ।
इस प्रकार बीटीसी की पेटिशन सुप्रीम कोर्ट से थोड़े प्रयास में ही ख़ारिज हो जायेगी और जल्द ही उक्त पेटिशन के ऐसे याचियों को परिषद् से ज्ञात करके जिनको कि नियुक्ति मिल चुकी है यदि वे अपना नाम वापस नहीं लेते हैं तो कॉस्ट भी कराया जा सकता है ।
बीटीसी के अभ्यर्थी न तो दिनांक 30 नवम्बर 2011 की विज्ञप्ति के आवेदक हैं और न ही दिनांक 7 दिसम्बर 2012
की विज्ञप्ति के आवेदक हैं ।
दिनांक 30 नवम्बर 2011 की विज्ञप्ति के क्लॉज़ 10 में लिखा है कि प्रशिक्षण प्राप्त लोगों को ही नियुक्त कर दिया जायेगा अतः बीटीसी वाले नियुक्ति प्रक्रिया में भी कोई दावा नहीं कर सकते हैं ।
यह विवाद सुप्रीम कोर्ट में बीएड वालों के बीच में पेंडिंग है अतः बीटीसी की पेटिशन स्टैंड नहीं होगी ।
भारत सरकार के राजपत्र के पैरा 3 (1) (क) में वर्णित है कि नियुक्ति के बाद छः माह का प्रशिक्षण होगा अर्थात नियुक्ति पर बेसिक शिक्षा नियमावली लागू रहेगी उसके बाद ट्रेनिंग होगी तभी मैं मुकदमा लड़ रहा हूँ ।
भारत सरकार के राजपत्र दिनांक 10 -09- 2012 की छूट शर्त संख्या पांच में लिखा है कि नियुक्ति के बाद अधिसूचना के पैरा 3 (1) (क) के अनुपालन में प्रशिक्षण अनिवार्य होगा ।
इस प्रकार जब हमारा मुकदमा हाई कोर्ट की एकल पीठ में पेंडिंग था और नये विज्ञापन के लिए आवेदन चल रहा था तो
इलाहाबाद से दिनांक 17 दिसम्बर 2012 को बीटीसी प्रशिक्षण पूर्ण करने वाले छः प्रशिक्षुओं ने याचिका संख्या रिट A 39674/12 में हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र 5013/13 दाखिल किया और दिनांक 07 दिसम्बर 2012 के विज्ञापन में आवेदन का अवसर मांगा ।
दिनांक 09 जनवरी 2013 को मै कोर्ट संख्या 38 में मौजूद था तो न्यायमूर्ति ने कहा कि बीटीसी प्रशिक्षुओं ने दिनांक 17 दिसम्बर 2012 को बीटीसी प्रशिक्षण पूर्ण किया है और जिस याचिका में इन लोग के द्वारा हस्तक्षेप की जा रही है इस याचिका में दिनांक 26-07-2012 का शासनादेश चैलेन्ज है , संशोधन प्रार्थना पत्र द्वारा नियामवली के संशोधन 15 अर्थात अकादमिक मेरिट जो कि दिनांक 31 अगस्त 2012 को अस्तित्व में आयी थी उसको अल्ट्रावायरस करने की मांग है और दिनांक 30 नवम्बर 2011 की विज्ञप्ति को परमादेश के जरिये बहाल करने की मांग है और बीटीसी प्रशिक्षु न तो उस विज्ञापन में आवेदक थे और न ही उस वक़्त योग्य थे इसलिए इनके प्रार्थना पत्र को ख़ारिज किया जाता है ।
इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट में भी बीटीसी के प्रशिक्षुओं को कोई लाभ नहीं होगा , बीटीसी टीम को मात्र शिक्षामित्रों के मुकदमे में इंटरेस्ट लेना चाहिए और उसी रिक्ति के लिए अपने दावे को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए ।
न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन ने अगली ही डेट दिनांक 16 जनवरी 2013 को उक्त याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमे कि बीटीसी द्वारा इम्लीड फाइल की गयी थी । न्यायमूर्ति ने कहा कि दिनांक 30 नवम्बर 2011 की विज्ञप्ति रूल पर नहीं थी इसलिए सरकार ने यदि रद्द कर दिया तो वह बहाल नहीं होगी क्योंकि रूल के अगेंस्ट परमादेश जारी नहीं होता है ।
नियमावली के संशोधन 15 पर कोई टिप्पणी नहीं की ।
जब मामला खंडपीठ में गया तो वहां दिनांक 30 नवम्बर 2011 की विज्ञप्ति को रूल पर पूर्ण करने का आदेश हुआ तथा संशोधन 15 निरस्त कर दिया ।
अब ये अलग बात है कि सरकार ने रूल को विज्ञप्ति पर आदेश होने के बाद भी प्रेफर नहीं दिया ।
जिसे कि मैने माननीय सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में रखा है , यदि सुप्रीम कोर्ट ने निर्णायक आदेश में संपूर्ण प्रोसेस निरस्त न किया तो मुझे या मेरी टीम से जुड़े लोग को राहत सौंप देगी।
यदि सिलेक्शन प्रोसेस निरस्त करते हैं तो फिर निर्णीत चयन के आधार से रूल को फॉलो करते हुए चयन व नियुक्ति की प्रक्रिया पूर्ण होगी ।
मेरा प्रयास है कि मुकदमा शीघ्र निस्तारित हो क्योंकि निस्तारित करना न्यायमूर्ति के लिए आसान नहीं है और उनको मेरा विरोध शांत करने में ही सरलता और सहजता होगी ।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने याची राहत के निश्चित आदेश को फॉलो करने को कहा है और न फॉलो होने की स्थिति में वजह पूंछी है तो सरकार यदि बताती है कि रिक्ति नहीं है तो फिर हम सवाल पूछेगे कि जब स्टेट के पास कोई चयन रूल ही नहीं है सब कोर्ट में पेंडिंग है तो रिक्ति कैसे भर दी गयी और जो चयन इस 72825 भर्ती में ही अपनाया गया है और याची राहत दिया गया है उसमें जो नियुक्त हैं उनसे अधिक अंक वाले अभी तक नियुक्ति नहीं पा सके हैं क्योंकि 72825 प्रोसेस में रूल न फॉलो होने से वे आवेदक होने के बावजूद भी आउट ऑफ गेम हैं और याची राहत में उनकी याचना दिनांक 7 दिसम्बर 2015 को कोर्ट में न होकर फरवरी 2016 में आप द्वारा स्वीकार है ।
अतः ये न्याय प्राप्त करने के हकदार हैं ।
इस प्रकार या तो मुकदमा निर्णीत कर दिया या फिर अभी तक बेरोजगार बैठे अधिक योग्य लोगों को भी अंतरिम राहत दी जाये जिससे कि नियुक्ति प्राप्त कर चुके अपने से कम अंक वालों के सम्मुख वे कुंठा व बेरोजगारी की पीड़ा से उबर सकें ।