Sunday, October 11, 2015
मिशन दिल्ली 23-24 नवम्बर
मिशन दिल्ली 23-24 नवम्बर
साथियों
अब शान्त बैठने का समय नहीं रह गया है।एक एक बूंद से सागर भरता है और एक एक दिन के संघर्ष से सफलता मिलती है।कैरियर का अन्तिम लक्ष्य बनाकर लडा जायेगा तभी सफलता हाथ लगेगी।अगर चुप बैठे तो अब अस्तित्व के खतरे में आने की बारी है।दिल्ली मे केन्द्र सरकार को यह एहसास कराना होगा कि सत्ता का कोई भी रास्ता हमसे होकर के ही गुजरेगा। साथियों बिना रोये तो छोटा बच्चा दूध तक नहीं पाता है तो यह तो अधिकार की लड़ाई है।इसे आपको स्वयं लडना पड़ेगा।घर बैठकर सोशल मीडिया पर धरना प्रदर्शन या किसी भी संघर्ष का पोस्टमार्टम करके डिबेट करने वाले गैर जिम्मेदार साथियों से भी अनुरोध है कि अब अपनी जिम्मेदारी समझिये नहीं तो कहीं ऐसा ना हो कि कुछ दिन बाद लोग आपके ही उपर डिबेट करना शुरू कर दें।आइए आप,हम और हम सब मिलकर दिल्ली में एक जोरदार और जबर्दस्त धरना देकर केन्द्र की सरकार को अपनी ताकत का एहसास कराते हुए अपनी मांगों को मानने के लिए बाध्य कर दें।हमें किसी से भीख नहीं बल्कि हमारा अधिकार चाहिए।और उसे तो सरकार देना ही पडेगा।क्योंकि हम उसे लेने की क्षमता भी रखते हैं।
जय अनुदेशक परिवार
भोला नाथ पाण्डेय
प्रदेश महासचिव
9936451852
साथियों
अब शान्त बैठने का समय नहीं रह गया है।एक एक बूंद से सागर भरता है और एक एक दिन के संघर्ष से सफलता मिलती है।कैरियर का अन्तिम लक्ष्य बनाकर लडा जायेगा तभी सफलता हाथ लगेगी।अगर चुप बैठे तो अब अस्तित्व के खतरे में आने की बारी है।दिल्ली मे केन्द्र सरकार को यह एहसास कराना होगा कि सत्ता का कोई भी रास्ता हमसे होकर के ही गुजरेगा। साथियों बिना रोये तो छोटा बच्चा दूध तक नहीं पाता है तो यह तो अधिकार की लड़ाई है।इसे आपको स्वयं लडना पड़ेगा।घर बैठकर सोशल मीडिया पर धरना प्रदर्शन या किसी भी संघर्ष का पोस्टमार्टम करके डिबेट करने वाले गैर जिम्मेदार साथियों से भी अनुरोध है कि अब अपनी जिम्मेदारी समझिये नहीं तो कहीं ऐसा ना हो कि कुछ दिन बाद लोग आपके ही उपर डिबेट करना शुरू कर दें।आइए आप,हम और हम सब मिलकर दिल्ली में एक जोरदार और जबर्दस्त धरना देकर केन्द्र की सरकार को अपनी ताकत का एहसास कराते हुए अपनी मांगों को मानने के लिए बाध्य कर दें।हमें किसी से भीख नहीं बल्कि हमारा अधिकार चाहिए।और उसे तो सरकार देना ही पडेगा।क्योंकि हम उसे लेने की क्षमता भी रखते हैं।
जय अनुदेशक परिवार
भोला नाथ पाण्डेय
प्रदेश महासचिव
9936451852
आवश्यक सूचना
माननीय सांसदो को ज्ञापन देकर अपनी समस्या और दिल्ली के धरने के बारे में समुचित जानकारी दे दें।अपने सांसदों से मानव संसाधन विकास मन्त्री के नाम पत्र लिखवा कर अपने साथ ले लें और सम्भव हो तो उन्हे धरना स्थल तक पंहुचने का अनुरोध कर लें।ज्ञापन का कार्यक्रम 25 अक्टूबर तक में पूरा कर लें।सभी लोग सांसदों का पत्र अपने पास रखें प्रदेश कार्यकारिणी के अगले निर्देश पर मीटिंग में साथ लेकर आयें।सांसदों का समर्थन हम अनुदेशकों को मजबूती प्रदान करेगा।
साथियों कमर कस लें क्योंकि अब ज्यादा समय नहीं है।तैयारी केवल फेसबुक और ह्वाट्स अप पर ही न हो बल्कि यह धरातल पर उतर कर आपके जिले में भी दिखे।जो लोग अब तक केवल सोशल मीडिया पर ही दिखे हैं अब वो अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए दिल्ली पंहुचें और लक्ष्य की तरफ एक मजबूत कदम रखने में संगठन का साथ दें।
जय अनुदेशक परिवार
भोला नाथ पाण्डेय
प्रदेश महासचिव
9936451852
साथियों कमर कस लें क्योंकि अब ज्यादा समय नहीं है।तैयारी केवल फेसबुक और ह्वाट्स अप पर ही न हो बल्कि यह धरातल पर उतर कर आपके जिले में भी दिखे।जो लोग अब तक केवल सोशल मीडिया पर ही दिखे हैं अब वो अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए दिल्ली पंहुचें और लक्ष्य की तरफ एक मजबूत कदम रखने में संगठन का साथ दें।
जय अनुदेशक परिवार
भोला नाथ पाण्डेय
प्रदेश महासचिव
9936451852
शिक्षामित्रों के वेतन भुगतान के संबंध में
वित्त नियंत्रक, बेसिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश , इलाहाबाद द्वारा शिक्षा निदेशक (बेसिक ), उ0प्र0 शिविर कार्यालय निशातगंज, लखनउ के लिए दिनांक 08.10.2015 को एक पत्र प्रेषित किया है जिसमें उन्होंनें उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित विद्यालयों में सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित शिक्षामित्रों के वेतन भुगतान किये जाने के संबंंध मे कहा है.
बेसिक शिक्षा परिषद ने स्वीकारी हकीकत
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : बेसिक शिक्षा परिषद कार्यालय की कार्यशैली तार-तार हो गई है। परिषद को प्राथमिक विद्यालयों में 15 हजार सहायक अध्यापकों की भर्ती का सारा रिकॉर्ड एक पखवारे पहले ही मिल चुका था। आठ दिन आवेदनों की छानबीन चली और अब काउंसिलिंग 26 अक्टूबर से शुरू करने का आदेश जारी कर दिया गया है। हालांकि इसमें दो राउंड की काउंसिलिंग के बाद अनंतिम सूची जारी करने के समय पर सवाल खड़े हो रहे हैं, क्योंकि उसी समय दीपावली का अवकाश हो जाएगा।
बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में 15 हजार शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया एक साल की देरी से चल रही है। पिछले साल दिसंबर 2014 में भर्ती का शासनादेश हुआ था। उसी के बाद से आवेदन लेने का सिलसिला जारी हुआ। उसके बाद से लेकर अब तक तीन बार विभाग ने अलग तारीखों में आवेदन लिए। 15 सितंबर को आवेदन लेने की प्रक्रिया पूरी भी हो गई। इसके बाद भी काउंसिलिंग को लेकर अफसरों की हीलाहवाली जारी थी। विभाग लगातार देरी के लिए एनआइसी को दोषी ठहरा रहा था। अफसरों ने यह भी नहीं सोचा जिस तेजी एवं पारदर्शिता के लिए ऑनलाइन आवेदन लिए जा रहे हैं उसी व्यवस्था को वह झुठला रहे हैं। क्या यह संभव है कि आवेदन लेने के बाद रिकॉर्ड भेजने में एनआइसी को 25 दिन लगेंगे, जबकि तीसरे चरण में 25 दिन तक तो आवेदन भी नहीं लिए गए।
यही नहीं यूपी बोर्ड की परीक्षा एवं कक्षा नौ एवं 11 के पंजीकरण में पचास लाख से अधिक आवेदन लिए जाते हैं और विभाग चंद दिन में ही पूरी रिपोर्ट मीडिया को सौंप देता है, वहीं 15 हजार शिक्षकों की भर्ती में कुल 45 हजार आवेदन हुए हैं फिर भी देरी के सारे रिकॉर्ड टूट गए। परिषद के अफसरों की कार्यशैली एवं टिप्पणियों का ही नतीजा रहा कि बीते छह अक्टूबर को नौकरी मांग रहे युवाओं पर बर्बर लाठीचार्ज हुआ।
एनआइसी से परिषद को मिल चुका था आवेदन का सारा रिकॉर्ड
26 अक्टूबर से काउंसिलिंग का जारी कर दिया गया कार्यक्रम
14 से 19 अक्टूबर : जिला स्तर पर जांच सूची तैयार कर जिला चयन समिति से अनुमोदन होगा
=20 अक्टूबर : बीएसए की ओर से सूचना जारी होगी
=26 अक्टूबर : संबंधित जिले की डायट से प्रशिक्षण पाने वाले और डीएड (विशेष शिक्षा) अभ्यर्थियों को वरीयता व पहले राउंड की काउंसिलिंग
=30 अक्टूबर : पहले राउंड की अनंतिम सूची जिला चयन समिति से अनुमोदित होगी
=दो नवंबर : बीएसए श्रेणीवार बची सीटों का विवरण परिषद को उपलब्ध कराएंगे
=छह नवंबर : दूसरे राउंड की काउंसिलिंग और इसमें दूसरे जिले की डायट से प्रशिक्षण पाने वाले या डीएड वाले अभ्यर्थी शामिल होंगे
=10 नवंबर : दूसरे राउंड की चयन सूची जारी की जाएगी।
मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण एपिसोड 03-कहानी "हाथी मेरे साथी"
कहानी का शीर्षक- “हाथी मेरे साथी”
मीना की क्लास में आज बहिन जी चित्रकारी करवा रहीं हैं-रंगीन चार्ट पेपर पर। जिस पर बच्चों को मन पसंद पशु या पक्षी का चित्र बनाकर रंग भरना है।....और ये बने हुए चार्ट पेपर कक्षा की दीवारों पर लगा दिए जायेंगे।
बहिन जी सभी बच्चों को एक-एक चार्ट पेपर देके प्रिंसिपल साहिबा के कमरे में चलीं गयीं। सभी बच्चे बहुत उत्साहित थे और आपस में बातें कर रहे थे.....
“मैं तो बन्दर का चित्र बनाऊंगा” दीपू बोला। सुमी ने कहा, ‘मैं तो चार्ट पेपर पर बनाउंगी...मोर।’
मीना सोच रही है कि किसका चित्र बनाये? सभी बच्चे उसे सुझाव देते हैं। मीना तय करती है कि वह ‘मुनमुन (दीपू की बकरी) और मिठ्ठू’ दोनों का चित्र बनायेगी- “मुनमुन घास खा रही होगी और मिठ्ठू होगा मुनमुन की पीठ पे।”
गोलू बनाएगा कुछ ख़ास, जो उसका चित्र देखने के बाद ही पता चलेगा।
सभी बच्चों ने अपने-अपने चार्ट पेपर पे अलग-अलग पशुओं और पक्षियों के चित्र बनाये और उसमे रंग भरे। गोलू अभी भी सबसे पीछे बैठकर अपने चार्ट पेपर पर चित्र बना रहा था।
गोलू मीना से रबड़ माँगने आता है। बच्चों में उत्सुकता है कि आखिर गोलू बना क्या रहा है?
मीना- अरे! गोलू तो पूरा चित्र ही मिटाने लगा।
गोलू को पता नही क्या हुआ कि उसने अपना बनाया हुआ पूरा चित्र मिटा दिया? सब बच्चे ये देख के हैरान थे। बहिन जी भी वापस आ चुकी थी। उन्होंने ये देख के गोलू से कहा, ‘गोलू, तुमने अपना चित्र मिटा क्यों दिया?’
गोलू- बहिन जी, मैं चार्ट पेपर पे बड़ा सा हाथी का चित्र बनाना चाहता था लेकिन वो इस चार्ट में पूरा ही नहीं आ रहा। लगता है अब मुझे किसी छोटे पशु का चित्र बनाना होगा।
बहिन जी- उदास मत हो गोलू, किसी भी समस्या का हल अगर रचनात्मक ढंग से सोचा जाए तो हल जरूर मिल जाता है।
गोलू ने प्रश्न दागा, ‘रचनात्मक ढंग!’
बहिन जी- गोलू याद है वो प्यासा कौआ वाली कहानी, जब घड़े में थोडा सा पानी था और कौआ ने घड़े में तब तक कंकड़ डाले जब तक पाने ऊपर नही आ गया। इसे कहते है समस्या को रचनात्मक ढंग से सुलझाना यानी बिलकुल हटके सोचना।
मीना सुझाव देती है, ‘ अगर गोलू चार अलग-अलग चार्ट पेपर ले और उन्हें किनारे से जोड के एक बड़ा सा चार्ट चार्ट पेपर बना ले तो फिर ये उसमे अपना हाथी आसानी से बना सकता है।’
गोलू-“मीना तुम्हारा सुझाव तो बहुत अच्छा है लेकिन जहाँ-जहाँ से आपस में जुड़ेंगे वहां निशाँ पड़ जायेंगे और चित्र अच्छा नहीं लगेगा।
बहिन जी- ......बच्चों क्या तुम गोलू को कुछ सुझाव दे सकते हो?
सुमी- अगर गोलू एक बड़े हाथी का चित्र न बनाकर छोटे से, हाथी के बच्चे का चित्र बनाएं......।
तभी सरपंच जी दरवाजे पे दस्तक देते हैं।
सरपंच जी-...मैं तुम सबको एक न्यौता देने आया हूँ।..आज दोपहर को नए बालबाड़ी केंद्र का उद्घाटन है गाँव में। तुम सब स्कूल की छुट्टी के बाद सीधे वहीं आया जाना।मैं तुम सबके माता-पिता को भी वहां आने का न्यौता दे आया हूँ।
स्कूल की छुट्टी के बाद बहिन जी सब बच्चों को लेके नये बालबाड़ी केंद्र पहुँची। सब बच्चों के माता-पिता और सरपंच जी भी वहीँ थे। उद्घाटन के बाद मीना के माँ-बाबा, बहिन जी और सरपंच जी आपस में बात कर रहे थे। और थोड़ी दूरी पे खड़े थे मीना और गोलू...
गोलू- मीना, बालबाड़ी की दीवारें देख रहे हो। जरा सोचो अगर इन खाली दीवारों पे सुन्दर चित्रकारी के जाए तो।....बस मुझे एक सीढ़ी चाहिये होगी।....नीचे हरी भरी घास, पेड़ और तालाब का चित्र बनाउंगा।
मीना और गोलू सरपंच जी के पास पहुंचे-
गोलू की सारी बातें सुनके सरपंच जी बोले, ‘वाह! गोलू बेटा, सुझाव तो बहुत अच्छा है लेकिन इतने बड़े चित्र बनाएगा कौन?
गोलू- मैं, अगर मुझे एक सीढ़ी मिल जाए तो मैं बालबाड़ी की दीवार पे बहुत सुन्दर चित्रकारी कर सकता हूँ।
सरपंच जी बहिन जी से कहते है, ‘...मुझे ये देखकर बहुत खुशी हुई कि आपके विद्यार्थीयों की सोच इतनी अलग और नयी है।’
और फिर गोलू ने बालबाड़ी की दीवारों पे इतनी सुन्दर चित्रकारी की कि सब लोग बस देखते ही रह गये।
मीना, मिठ्ठू की कविता-
“जब भी कोई उलझन हो तो होना नहीं विकल।
खोलके सब खिड़कियाँ दिमाग की ढूंढना उसका हल।।”
“जब भी कोई उलझन हो तो होना नहीं विकल।
खोलके सब खिड़कियाँ दिमाग की ढूंढना उसका हल।।”
आज का गीत-
घबरा नहीं, मुश्किल से ,आगे चल
मिल जाएगा कोई न कोई हल
बस छोटी सी एक अर्ज है
सौ बातों का एक अर्थ है।
तू सोचने का तरीका बदल-२
कोई उलझन नहीं सुलझती अपने आप
कुछ भी न होगा बैठे जो चुपचाप
क्या दिक्कत है दोस्तों से बोल दे
दिमाग की सभी खिडकियाँ खोल दे
छक्के छूटे मुश्किल से जब सोचें सारे मिलके
सुनके मन की बातें हर किस्से सुनके दिल के
दिमाग की बत्ती कर दे गुल
घबरा नहीं, मुश्किल से ,आगे चल
घबरा नहीं, मुश्किल से ,आगे चल
मिल जाएगा कोई न कोई हल
बस छोटी सी एक अर्ज है
सौ बातों का एक अर्थ है।
तू सोचने का तरीका बदल-२
कोई उलझन नहीं सुलझती अपने आप
कुछ भी न होगा बैठे जो चुपचाप
क्या दिक्कत है दोस्तों से बोल दे
दिमाग की सभी खिडकियाँ खोल दे
छक्के छूटे मुश्किल से जब सोचें सारे मिलके
सुनके मन की बातें हर किस्से सुनके दिल के
दिमाग की बत्ती कर दे गुल
घबरा नहीं, मुश्किल से ,आगे चल
आज का खेल- ‘नाम अनेक अक्षर एक’
अक्षर- ‘क’
व्यक्ति- कैलाश खैर
वस्तु- कैची
जानवर- कुत्ता
जगह- कानपुर
अक्षर- ‘क’
व्यक्ति- कैलाश खैर
वस्तु- कैची
जानवर- कुत्ता
जगह- कानपुर
मीना की दुनिया एपिसोड 02 | कहानी - पौधों की तरह
आकाशवाणी केंद्र-लखनऊ | समय-11:15am | दिनांक: 22/09/2015
मीना अपनी क्लास में है|
बहिन जी- बच्चों जैसा कि हमने पिछले पाठ में पढ़ा था कि हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पे गोल-गोल घुमती है| पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने होता है वहां होता है दिन और दूसरे भाग में होती है.....|
“रात” सभी एक साथ जबाब दते हैं|
‘बिलकुल ठीक’ बहिन जी आगे कहती हैं, ‘इसी कारण अलग-अलग देशों का समय एक दूसरे से अलग होता है....उदहारण के तौर पर जब भारत में दिन होता है तब अमेरिका में रात होती है| मैं चाहती हूँ कि हमारी क्लास में दो-दो बच्चे एक चार्ट पर चार घड़ियाँ बनाके, चार अलग-अलग देशों के समय बताएँ| इसके लिए मैं तुम्हें दो-दो की टीमों में बाँट रही हूँ| हर टीम को अपना चार्ट बनाने के लिए एक दिन का समय मिलेगा| टीमें इस प्रकार हैं-
मोनू और दीपू
सुमी और गोलू
मीना.............|
बहिन जी ने पूरी क्लास को दो-दो की टीमों में बाँट दिया| हर एक टीम ने अपने-अपने चार्ट के बारे में सोचना शुरु किया| मीना और सोमा की टीम भी अपनी तैयारी में लग गयी|
मीना- सोमा हम चार्ट पे बनायेंगे ..अमरीका,जापान,इंग्लैण्ड और चीन की घड़ियाँ|
सोमा- हूँ हूँ हूँ ...|
“क्या सोच रही हो सोमा?” मीना ने पूँछा|
सोमा- मीना में सोच रही हूँ कि जो लोग पूरी दुनिया की सैर करते हैं उन्हें कितना मज़ा आता होगा|....मेरा बहुत दिल करता है कि मैं भी पूरी दुनिया घूमूं|
“पूरी दुनियां घूमूं खुशी में झूमूँ” मिठ्ठू चहका|
मीना- तुम ऐसा कर सकती हो सोमा|
सोमा- सच मीना, वो कैसे?
मीना- हूँ हूँ...हूँ...कैसे?....कै....हाँ...अगर तुम पढ़-लिख के पायलट बन जाओ तो फिर तुम्हें अपने हवाई जहाज लेके अलग-अलग देशों में जाना पड़ेगा|....हो जाएगा तुम्हारा विश्व भ्रमण|
और फिर आधी छुट्टी के समय जब सोमा स्कूल के मैदान में मीना के आने का इंतज़ार कर रही थी तो....
“सोमा-सोमा” सोमा की माँ ने आवाज़ लगायी|
“माँ.....माँ यहाँ क्या कर रहीं हैं?.....क्या बात हो सकती है?” सोमा अपनी माँ को जबाब देती है, ‘आ रही हूँ माँ?’
सोमा- माँ तुम यहाँ क्या कर रही हो?
सोमा की माँ- सोमा मेरी बात ध्यान से सुनो...मुझे तुम्हारे पिताजी का हाथ बटाने अभी इसी वक्त खेत जाना है इसीलिये पारो को तुम संभालो और....|
“पारो को....लेकिन माँ मैं पारो लो स्कूल में नहीं रख सकती| तुम खुद ही देख लो ये कितने जोर-जोर से रो रही है|....अगर मैं इसे अपने साथ क्लास में ले गयी तो सब बच्चे परेशान होंगे और...” सोमा ने जबाब दिया|
माँ- इसे क्लास में नहीं ले जा सकती तो घर ले जाओ|
सोमा- घर...लेकिन माँ अभी तो स्कूल का आधा दिन पड़ा है और फिर आधी छुट्टी के बाद बहिन जी हमें विज्ञान का एक पाठ भी पढ़ाने वाली हैं| अगर मैं घर चली गयी तो...|”
सोमा की माँ- बात को समझो सोमा....,मेरा खेत पे जाना बहुत जरुरी है| तुम्हारे पिताजी को बहुत काम है, वो अकेले इतना सब कैसे करेंगे?
“ठीक है माँ, मैं आपकी बात समझ गयी|”सोमा आह भरते हुए जबाब देती है|
सोमा की माँ- शाबाश! पारो को लो और घर जाओ...और इसका ध्यान रखना हाँ....और पौधों को पानी भी दे देना|
सोमा, पारो को लेकर अपने घर चली गयी| और फिर स्कूल की छुट्टी के बाद मीना सोमा के घर पहुँची|
मीना- सोमा, तुम अचानक कहाँ चली गयी थी| मैंने तुम्हें पूरे स्कूल में ढूंढा लेकिन तुम कहीं भी नहीं.....|
सोमा- ....मीना अब मैं कुछ दिन स्कूल नहीं आ पाउंगी ....क्योंकि अगले कुछ दिनों माँ को रोज़ खेत पे जाना होगा|
“और जो चार्ट बनाना था|” मीना ने पूँछा|
सोमा बोली, ‘मीना, तुम बहिन जी से कहके किसी और की टीम में शामिल हो जाओ क्योंकि पारो को संभालना और घर के कामों से बिलकुल भी समय नही मिलेगा|’
मीना- लेकिन सोमा अगर तुम......| “ओहो! माँ ने पौधों को पानी देने के लिए कहा था|” सोमा को अचानक याद आया ‘......तुम बैठो मैं पौधों को पानी देके अभी आती हूँ|
मीना- नही सोमा, मैं चलती हूँ| देर हो गयी तो माँ चिंता करेगी और हाँ जितनी जल्दी हो सके स्कूल आने की कोशिश करना|
इस बात को पूरे दो हफ्ते गुजर गए| और इन दो हफ्तों में सोमा एक दिन भी स्कूल नहीं गयी| उसे घर पे रुक के अपनी छोटी बहन पारो और पौधों का ख्याल जो रखना था| और फिर दो हफ्तों बाद सोमा स्कूल तो गयी लेकिन थोड़ी ही देर में घर वापस आकर वापस पारो के साथ खेलने लगी|
“सोमा तुम स्कूल से इतनी जल्दी वापस कैसे आ गयी,क्या हुआ? तुम इतनी परेशान क्यों लग रही हो बेटा?...आखिर बात क्या है?” माँ ने पूँछा|
सोमा- माँ..बहिन जी जो पाठ पढ़ा रहीं थी वो मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था इसीलिए मैं क्लास ख़त्म होते ही चुपचाप वापस आ गयी|
माँ बोली, ‘इसमे वापस आने वाली क्या बात है? अगर पाठ समझ नहीं आ रहा था तो तुम बहिन जी से कह देतीं|’
सोमा- नहीं माँ, मेरे अलावा बाक़ी सब बच्चों को पाठ समझ में आ रहा था अगर मैं बहिन जी से कहती कि मुझे पाठ समझ नहीं आ रहा तो सब मेरा मजाक उड़ाते|
“..इससे अच्छा में घर पे रुक के पारो का ख्याल रखूं|” सोमा मन ही मन बडबडबडाई|
उस दिन से सोमा स्कूल तो जाती लेकिन कुछ देर में घर वापस लौट आती| मीना ने सोमा से बहुत बार कारण जानने की कोशिश की लेकिन सोमा ने उसे कुछ नहीं बताया| फिर एक दिन मीना अपनी माँ को लेके सोमा के घर आयी|
मीना की माँ- नमस्ते माला बहन|
“अरे! मीना की माँ” सोमा की माँ ने जबाब दिया, नमस्ते-नमस्ते ...आओ-आओ|
मीना की माँ- माला बहन, मीना बता रही थी कि कुछ दिनों से सोमा स्कूल से जल्दी वापस लौट आती है|
माला- अब क्या बताऊँ? इस बात से मैं खुद परेशान हूँ बिलकुल मुरझा गयी है मेरी सोमा|
मीना की माँ- बुरा मत मानना बहन लेकिन पारो को तो तुम बालबाड़ी में भी छोड़ सकती हो|...फिर उसकी वजह से सोमा की पढाई में समझौता क्यों?
सोमा की माँ अपनी सफाई देती हैं|
“सोमा बिटिया क्या बात है? आजकल तुम्हारा मन स्कूल में क्यों नही लगता|” मीना की माँ ने सोमा से पूँछा|
सोमा ने जबाब दिया, “बहिन जी क्लास ने क्या पढ़ाती हैं मुझे कुछ समझ में नहीं आता|”
मीना की माँ समझाती हैं, ‘...वो इसलिए सोमा बिटिया क्योंकि तुम पूरे दो हफ्ते तक स्कूल नही आयीं|...”
मीना की माँ माला से कहती हैं , ‘....ये बहुत जरुरी है कि बच्चे रोज़ स्कूल जाएँ बिना एक भी छुट्टी किये क्योंकि एक भी क्लास छूटी समझो ज्ञान की कड़ी टूटी|......क्या मैं पूंछ सकती हूँ कि तुम अपने पौधों को रोज पानी क्यों देती हो?’
माला- सीधी सी बात है अगर मैं पौधों को रोज पानी नहीं दूंगी तो वो मुरझा ही जायेंगे|
मीना की माँ- बिलकुल ठीक कहा तुमने जैसे पौधों को रोज पानी ना देने दे पौधे मुरझा जाते हैं वैसे ही रोज स्कूल ना जाने से बच्चों का दिमाग भी मुरझा जाता है,पढाई से उसका मन हट जाता है|
माला को या बात समझ आ जाती है और उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है|
बहिन जी- बच्चों जैसा कि हमने पिछले पाठ में पढ़ा था कि हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पे गोल-गोल घुमती है| पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने होता है वहां होता है दिन और दूसरे भाग में होती है.....|
“रात” सभी एक साथ जबाब दते हैं|
‘बिलकुल ठीक’ बहिन जी आगे कहती हैं, ‘इसी कारण अलग-अलग देशों का समय एक दूसरे से अलग होता है....उदहारण के तौर पर जब भारत में दिन होता है तब अमेरिका में रात होती है| मैं चाहती हूँ कि हमारी क्लास में दो-दो बच्चे एक चार्ट पर चार घड़ियाँ बनाके, चार अलग-अलग देशों के समय बताएँ| इसके लिए मैं तुम्हें दो-दो की टीमों में बाँट रही हूँ| हर टीम को अपना चार्ट बनाने के लिए एक दिन का समय मिलेगा| टीमें इस प्रकार हैं-
मोनू और दीपू
सुमी और गोलू
मीना.............|
बहिन जी ने पूरी क्लास को दो-दो की टीमों में बाँट दिया| हर एक टीम ने अपने-अपने चार्ट के बारे में सोचना शुरु किया| मीना और सोमा की टीम भी अपनी तैयारी में लग गयी|
मीना- सोमा हम चार्ट पे बनायेंगे ..अमरीका,जापान,इंग्लैण्ड और चीन की घड़ियाँ|
सोमा- हूँ हूँ हूँ ...|
“क्या सोच रही हो सोमा?” मीना ने पूँछा|
सोमा- मीना में सोच रही हूँ कि जो लोग पूरी दुनिया की सैर करते हैं उन्हें कितना मज़ा आता होगा|....मेरा बहुत दिल करता है कि मैं भी पूरी दुनिया घूमूं|
“पूरी दुनियां घूमूं खुशी में झूमूँ” मिठ्ठू चहका|
मीना- तुम ऐसा कर सकती हो सोमा|
सोमा- सच मीना, वो कैसे?
मीना- हूँ हूँ...हूँ...कैसे?....कै....हाँ...अगर तुम पढ़-लिख के पायलट बन जाओ तो फिर तुम्हें अपने हवाई जहाज लेके अलग-अलग देशों में जाना पड़ेगा|....हो जाएगा तुम्हारा विश्व भ्रमण|
और फिर आधी छुट्टी के समय जब सोमा स्कूल के मैदान में मीना के आने का इंतज़ार कर रही थी तो....
“सोमा-सोमा” सोमा की माँ ने आवाज़ लगायी|
“माँ.....माँ यहाँ क्या कर रहीं हैं?.....क्या बात हो सकती है?” सोमा अपनी माँ को जबाब देती है, ‘आ रही हूँ माँ?’
सोमा- माँ तुम यहाँ क्या कर रही हो?
सोमा की माँ- सोमा मेरी बात ध्यान से सुनो...मुझे तुम्हारे पिताजी का हाथ बटाने अभी इसी वक्त खेत जाना है इसीलिये पारो को तुम संभालो और....|
“पारो को....लेकिन माँ मैं पारो लो स्कूल में नहीं रख सकती| तुम खुद ही देख लो ये कितने जोर-जोर से रो रही है|....अगर मैं इसे अपने साथ क्लास में ले गयी तो सब बच्चे परेशान होंगे और...” सोमा ने जबाब दिया|
माँ- इसे क्लास में नहीं ले जा सकती तो घर ले जाओ|
सोमा- घर...लेकिन माँ अभी तो स्कूल का आधा दिन पड़ा है और फिर आधी छुट्टी के बाद बहिन जी हमें विज्ञान का एक पाठ भी पढ़ाने वाली हैं| अगर मैं घर चली गयी तो...|”
सोमा की माँ- बात को समझो सोमा....,मेरा खेत पे जाना बहुत जरुरी है| तुम्हारे पिताजी को बहुत काम है, वो अकेले इतना सब कैसे करेंगे?
“ठीक है माँ, मैं आपकी बात समझ गयी|”सोमा आह भरते हुए जबाब देती है|
सोमा की माँ- शाबाश! पारो को लो और घर जाओ...और इसका ध्यान रखना हाँ....और पौधों को पानी भी दे देना|
सोमा, पारो को लेकर अपने घर चली गयी| और फिर स्कूल की छुट्टी के बाद मीना सोमा के घर पहुँची|
मीना- सोमा, तुम अचानक कहाँ चली गयी थी| मैंने तुम्हें पूरे स्कूल में ढूंढा लेकिन तुम कहीं भी नहीं.....|
सोमा- ....मीना अब मैं कुछ दिन स्कूल नहीं आ पाउंगी ....क्योंकि अगले कुछ दिनों माँ को रोज़ खेत पे जाना होगा|
“और जो चार्ट बनाना था|” मीना ने पूँछा|
सोमा बोली, ‘मीना, तुम बहिन जी से कहके किसी और की टीम में शामिल हो जाओ क्योंकि पारो को संभालना और घर के कामों से बिलकुल भी समय नही मिलेगा|’
मीना- लेकिन सोमा अगर तुम......| “ओहो! माँ ने पौधों को पानी देने के लिए कहा था|” सोमा को अचानक याद आया ‘......तुम बैठो मैं पौधों को पानी देके अभी आती हूँ|
मीना- नही सोमा, मैं चलती हूँ| देर हो गयी तो माँ चिंता करेगी और हाँ जितनी जल्दी हो सके स्कूल आने की कोशिश करना|
इस बात को पूरे दो हफ्ते गुजर गए| और इन दो हफ्तों में सोमा एक दिन भी स्कूल नहीं गयी| उसे घर पे रुक के अपनी छोटी बहन पारो और पौधों का ख्याल जो रखना था| और फिर दो हफ्तों बाद सोमा स्कूल तो गयी लेकिन थोड़ी ही देर में घर वापस आकर वापस पारो के साथ खेलने लगी|
“सोमा तुम स्कूल से इतनी जल्दी वापस कैसे आ गयी,क्या हुआ? तुम इतनी परेशान क्यों लग रही हो बेटा?...आखिर बात क्या है?” माँ ने पूँछा|
सोमा- माँ..बहिन जी जो पाठ पढ़ा रहीं थी वो मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था इसीलिए मैं क्लास ख़त्म होते ही चुपचाप वापस आ गयी|
माँ बोली, ‘इसमे वापस आने वाली क्या बात है? अगर पाठ समझ नहीं आ रहा था तो तुम बहिन जी से कह देतीं|’
सोमा- नहीं माँ, मेरे अलावा बाक़ी सब बच्चों को पाठ समझ में आ रहा था अगर मैं बहिन जी से कहती कि मुझे पाठ समझ नहीं आ रहा तो सब मेरा मजाक उड़ाते|
“..इससे अच्छा में घर पे रुक के पारो का ख्याल रखूं|” सोमा मन ही मन बडबडबडाई|
उस दिन से सोमा स्कूल तो जाती लेकिन कुछ देर में घर वापस लौट आती| मीना ने सोमा से बहुत बार कारण जानने की कोशिश की लेकिन सोमा ने उसे कुछ नहीं बताया| फिर एक दिन मीना अपनी माँ को लेके सोमा के घर आयी|
मीना की माँ- नमस्ते माला बहन|
“अरे! मीना की माँ” सोमा की माँ ने जबाब दिया, नमस्ते-नमस्ते ...आओ-आओ|
मीना की माँ- माला बहन, मीना बता रही थी कि कुछ दिनों से सोमा स्कूल से जल्दी वापस लौट आती है|
माला- अब क्या बताऊँ? इस बात से मैं खुद परेशान हूँ बिलकुल मुरझा गयी है मेरी सोमा|
मीना की माँ- बुरा मत मानना बहन लेकिन पारो को तो तुम बालबाड़ी में भी छोड़ सकती हो|...फिर उसकी वजह से सोमा की पढाई में समझौता क्यों?
सोमा की माँ अपनी सफाई देती हैं|
“सोमा बिटिया क्या बात है? आजकल तुम्हारा मन स्कूल में क्यों नही लगता|” मीना की माँ ने सोमा से पूँछा|
सोमा ने जबाब दिया, “बहिन जी क्लास ने क्या पढ़ाती हैं मुझे कुछ समझ में नहीं आता|”
मीना की माँ समझाती हैं, ‘...वो इसलिए सोमा बिटिया क्योंकि तुम पूरे दो हफ्ते तक स्कूल नही आयीं|...”
मीना की माँ माला से कहती हैं , ‘....ये बहुत जरुरी है कि बच्चे रोज़ स्कूल जाएँ बिना एक भी छुट्टी किये क्योंकि एक भी क्लास छूटी समझो ज्ञान की कड़ी टूटी|......क्या मैं पूंछ सकती हूँ कि तुम अपने पौधों को रोज पानी क्यों देती हो?’
माला- सीधी सी बात है अगर मैं पौधों को रोज पानी नहीं दूंगी तो वो मुरझा ही जायेंगे|
मीना की माँ- बिलकुल ठीक कहा तुमने जैसे पौधों को रोज पानी ना देने दे पौधे मुरझा जाते हैं वैसे ही रोज स्कूल ना जाने से बच्चों का दिमाग भी मुरझा जाता है,पढाई से उसका मन हट जाता है|
माला को या बात समझ आ जाती है और उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है|
मीना और मिठ्ठू की कविता :
“मिठ्ठू बात बताता है जो मीना भी वो कहती,
रोज स्कूल जाने से ही पढाई में रुचि बनी रहती|
इसीलिये हर अभिभावक को करना होगा वादा,
रोज स्कूल बच्चों को भेजें कर मजबूत इरादा|
आज का गाना :
स्कूल बड़ा ही मज़ेदार है मिलते सारे दोस्त यार हैं,
साथ में पढ़ते साथ खेलते करते सबसे प्यार हैं|-2
साथ स्कूल हम जाते साथ ही वापस आते ,
कभी जो रूठे दोस्त कोई मिलकर उसे मानते|
दोस्त को हो जब अपनी जरूरत रहते हम तैयार हैं|
साथ में पढ़ते साथ खेलते करते सबसे प्यार हैं|-2
खूब मज़ा हम करते खेल-खेल में लड़ते,
लेकिन किसी दोस्त को अपने तंग कभी न करते|
साथ में पढ़ते साथ खेलते करते सबसे प्यार हैं|-2
आज का खेल- ‘नाम अनेक अक्षर एक’
अक्षर- ‘ग’
व्यक्ति- गौतम गंभीर
वस्तु- गमला
जानवर- गधा
जगह- गंगटोक (जोकि सिक्किम की राजधानी है|)
साथ में पढ़ते साथ खेलते करते सबसे प्यार हैं|-2
साथ स्कूल हम जाते साथ ही वापस आते ,
कभी जो रूठे दोस्त कोई मिलकर उसे मानते|
दोस्त को हो जब अपनी जरूरत रहते हम तैयार हैं|
साथ में पढ़ते साथ खेलते करते सबसे प्यार हैं|-2
खूब मज़ा हम करते खेल-खेल में लड़ते,
लेकिन किसी दोस्त को अपने तंग कभी न करते|
साथ में पढ़ते साथ खेलते करते सबसे प्यार हैं|-2
आज का खेल- ‘नाम अनेक अक्षर एक’
अक्षर- ‘ग’
व्यक्ति- गौतम गंभीर
वस्तु- गमला
जानवर- गधा
जगह- गंगटोक (जोकि सिक्किम की राजधानी है|)
कहानी का सन्देश :
अगर एक भी क्लास छूटी ,समझो ज्ञान की कड़ी टूटी।
मीना की दुनिया एपिसोड 01 | कहानी - सुरीला संगीत
आकाशवाणी केंद्र-लखनऊ | समय-11:15am | दिनांक: 21/09/2015
मीना,दीपू के साथ स्कूल जा रही है| दीपू के हाथ में खिचड़ी से भरी कटोरी है जो उसकी माँ ने रेखा दीदी(दीपू की मौसी की लड़की) के लिए भेजी है| अब रेखा दीदी ३-४ महीने गाँव में ही रहेंगी|
दीपू,मीना रेखा दीदी के घर खिचड़ी देने जाती है| दीपू सबका आपस में परिचय करवाता है| रेखा दीदी की बेटी मुन्नी रो रही है |मुन्नी बीमार है और कमजोर भी| तभी दीपू की माँ ने खिचड़ी भेजी है| दीपू रेखा दीदी से कहता है कि अभी स्कूल के लिए देरी हो रही है वो वापस आकर कटोरी ले लेगा|
बहिन जी बताती है कि दो हफ्ते बाद जिले के सभी स्कूलों के बीच संगीत की प्रतियोगिता होने वाली है,हर स्कूल से एक छात्र या छात्रा प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे| उस प्रतियोगिता का नियम है- भाग लेने वाले टीचर और विद्यार्थी में से एक को गाना होगा, दूसरे को कोई साज देना होगा| कोई भी साज जैसे- हारमोनियम, ढोलक, बाँसुरी बगैरह|
मीना सुझाती है कि चमेली बांसुरी बहुत अच्छी बजाती है|......लेकिन समस्या ये है कि गाना कौन गायेगा?
मीना,दीपू और चमेली स्कूल से घर लौट रहे थे तो ...........
पीछे से बहिन जी आवाज़ लगतीं हैं- दीपू,मीना,चमेली
मीना- बहिन जी, आप इस तरफ?
बहिन जी कहतीं हैं कि उन्हें नर्स बहिन जी से कुछ काम है|...वो उनके साथ चल देतीं हैं| चमेली बहिन जी के कहने पर बांसुरी बजाती हुई चलती है|
(पार्श्व में, चंदा है तू,मेरा सूरज है तू.......की मधुर ध्वनी गूंजती है)
ये आवाज रेखा दीदी के घर से आ रही है| रेखा दीदी के घर......
दीपू- रेखा दीदी, ये हमारी बहिन जी हैं|
बहिन जी रेखा दीदी के गाने की तारीफ करती हैं|
रेखा दीदी, बहिन जी को बताती है कि मैं बचपन से ही गायिका बनना चाहती थी लेकिन मेरे माता-पिता ने १५ साल की उम्र में मेरी शादी करा दी और एक साल बाद ही मुन्नी पैदा हो गयी|
बहिन जी मुन्नी की उम्र पूंछती है... जिसकी उम्र अभी ८ माह है|
बहिन जी-यानी तुम अभी सिर्फ १७ साल की हो?
रेखा दीदी रोते हुए बताती है-मेरे पति शहर में काम करते हैं,३-४ महीने में ही घर आते हैं मैं बहुत ही अकेला महसूस करती हूँ| ना कोई बात करने वाल, ना कोई सहारा देने वाला| इसलिए यहाँ रहने आई हुयी हूँ|
बहिन जी रह दीदी से पूंछती हैं कि १८ साल से पहले लड़की की शादी करना कानूनी अपराध है, क्या तुम्हे या तुम्हारे माता-पिता को ये बात मालूम थी?
रेखा- नहीं बहिन जी,ना मुझे और ना ही मेरे माता-पिताजी को इस बात की जानकारी थी|
बहिन जी समझाती है कि छोटी उम्र में बच्चा होना माँ और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक है|
बहिन जी कहती हैं कि जब तक रेखा गाँव में है हमारे बच्चों को म्यूजिक सिखाएगी| बहिन जी रेखा को स्कूल में पढ़ाने का प्रस्ताव देती हैं और कहती है कि प्रिंसिपल साहिबा से तुम्हारे बारे में बात करुँगी|
बहिन जी ने प्रिंसिपल मैडम से बात कर कुछ दिन के लिए रेखा को म्यूजिक सिखाने का काम दिलवा दिया|
............और प्रतियोगिता के दिन
"..............................बस प्यार ही प्यार चले|" और प्रतियोगिता रेखा, चमेली ने जीत ली|
सबसे हमको प्यार है प्यारे,बात कहें हम सच्ची|
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी|
अरे बिना वजह क्यों सोचना क्यों करनी माथा-पच्ची|
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी|
अरे बचपन नाम है खेलकूद का,बचपन है मस्ती भरा|
बचपन में जो करले,सब रह जायेगा धरा|
उमर है पढ़ने लिखने की,कुछ करके दिखलाने जी|
नहीं उमर ये शादी के बंधन में बांध जाने की|
गाँठ बाँध ले बात मेरी,हर बच्चा और बच्ची |
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी|
शादी...कोई...खेल..नहीं..है.....
ये..है...जिम्मेदारी...करनी..पड़ती....है ...इसके...लिए...तैयारी........|
पहले हो जाओ तैयार तन से मन से धन से |
ताकि रहे न कोई तुम्हे शिकायत कभी जीवन से|
बात ये मेरी बड़ी जोरदार है नहीं समझाना कच्ची|
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी|
• आज का खेल- ‘कड़ियाँ जोड़ पहेली तोड़’
१)एक पाँव पर खड़ा हूँ,एक जगह में अड़ा हुआ हूँ|
सर पर मेरे बड़ा सा छाता,जो गर्मी से तुम्हे बचाता|
२)मैं जीवन हूँ जीवन मुझसे,यही है मेरी कहानी|
इतना बड़ा हुआ हूँ खाके धुप मैं पिके पानी|
३)ताजा हवा में देता उसको,पास जो मेरे है आया|
कभी मैं उसको देता फल,कभी मैं देता छाया|
-पेड़
दीपू,मीना रेखा दीदी के घर खिचड़ी देने जाती है| दीपू सबका आपस में परिचय करवाता है| रेखा दीदी की बेटी मुन्नी रो रही है |मुन्नी बीमार है और कमजोर भी| तभी दीपू की माँ ने खिचड़ी भेजी है| दीपू रेखा दीदी से कहता है कि अभी स्कूल के लिए देरी हो रही है वो वापस आकर कटोरी ले लेगा|
बहिन जी बताती है कि दो हफ्ते बाद जिले के सभी स्कूलों के बीच संगीत की प्रतियोगिता होने वाली है,हर स्कूल से एक छात्र या छात्रा प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे| उस प्रतियोगिता का नियम है- भाग लेने वाले टीचर और विद्यार्थी में से एक को गाना होगा, दूसरे को कोई साज देना होगा| कोई भी साज जैसे- हारमोनियम, ढोलक, बाँसुरी बगैरह|
मीना सुझाती है कि चमेली बांसुरी बहुत अच्छी बजाती है|......लेकिन समस्या ये है कि गाना कौन गायेगा?
मीना,दीपू और चमेली स्कूल से घर लौट रहे थे तो ...........
पीछे से बहिन जी आवाज़ लगतीं हैं- दीपू,मीना,चमेली
मीना- बहिन जी, आप इस तरफ?
बहिन जी कहतीं हैं कि उन्हें नर्स बहिन जी से कुछ काम है|...वो उनके साथ चल देतीं हैं| चमेली बहिन जी के कहने पर बांसुरी बजाती हुई चलती है|
(पार्श्व में, चंदा है तू,मेरा सूरज है तू.......की मधुर ध्वनी गूंजती है)
ये आवाज रेखा दीदी के घर से आ रही है| रेखा दीदी के घर......
दीपू- रेखा दीदी, ये हमारी बहिन जी हैं|
बहिन जी रेखा दीदी के गाने की तारीफ करती हैं|
रेखा दीदी, बहिन जी को बताती है कि मैं बचपन से ही गायिका बनना चाहती थी लेकिन मेरे माता-पिता ने १५ साल की उम्र में मेरी शादी करा दी और एक साल बाद ही मुन्नी पैदा हो गयी|
बहिन जी मुन्नी की उम्र पूंछती है... जिसकी उम्र अभी ८ माह है|
बहिन जी-यानी तुम अभी सिर्फ १७ साल की हो?
रेखा दीदी रोते हुए बताती है-मेरे पति शहर में काम करते हैं,३-४ महीने में ही घर आते हैं मैं बहुत ही अकेला महसूस करती हूँ| ना कोई बात करने वाल, ना कोई सहारा देने वाला| इसलिए यहाँ रहने आई हुयी हूँ|
बहिन जी रह दीदी से पूंछती हैं कि १८ साल से पहले लड़की की शादी करना कानूनी अपराध है, क्या तुम्हे या तुम्हारे माता-पिता को ये बात मालूम थी?
रेखा- नहीं बहिन जी,ना मुझे और ना ही मेरे माता-पिताजी को इस बात की जानकारी थी|
बहिन जी समझाती है कि छोटी उम्र में बच्चा होना माँ और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक है|
बहिन जी कहती हैं कि जब तक रेखा गाँव में है हमारे बच्चों को म्यूजिक सिखाएगी| बहिन जी रेखा को स्कूल में पढ़ाने का प्रस्ताव देती हैं और कहती है कि प्रिंसिपल साहिबा से तुम्हारे बारे में बात करुँगी|
बहिन जी ने प्रिंसिपल मैडम से बात कर कुछ दिन के लिए रेखा को म्यूजिक सिखाने का काम दिलवा दिया|
............और प्रतियोगिता के दिन
"..............................बस प्यार ही प्यार चले|" और प्रतियोगिता रेखा, चमेली ने जीत ली|
सबसे हमको प्यार है प्यारे,बात कहें हम सच्ची|
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी|
अरे बिना वजह क्यों सोचना क्यों करनी माथा-पच्ची|
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी|
अरे बचपन नाम है खेलकूद का,बचपन है मस्ती भरा|
बचपन में जो करले,सब रह जायेगा धरा|
उमर है पढ़ने लिखने की,कुछ करके दिखलाने जी|
नहीं उमर ये शादी के बंधन में बांध जाने की|
गाँठ बाँध ले बात मेरी,हर बच्चा और बच्ची |
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी|
शादी...कोई...खेल..नहीं..है.....
ये..है...जिम्मेदारी...करनी..पड़ती....है ...इसके...लिए...तैयारी........|
पहले हो जाओ तैयार तन से मन से धन से |
ताकि रहे न कोई तुम्हे शिकायत कभी जीवन से|
बात ये मेरी बड़ी जोरदार है नहीं समझाना कच्ची|
हर एक चीज जो हो समय पर बस वही है अच्छी|
• आज का खेल- ‘कड़ियाँ जोड़ पहेली तोड़’
१)एक पाँव पर खड़ा हूँ,एक जगह में अड़ा हुआ हूँ|
सर पर मेरे बड़ा सा छाता,जो गर्मी से तुम्हे बचाता|
२)मैं जीवन हूँ जीवन मुझसे,यही है मेरी कहानी|
इतना बड़ा हुआ हूँ खाके धुप मैं पिके पानी|
३)ताजा हवा में देता उसको,पास जो मेरे है आया|
कभी मैं उसको देता फल,कभी मैं देता छाया|
-पेड़
कहानी का सन्देश :
शादी के लिए लड़की की उम्र 18 साल से कम नहीं होनी चाहिए क्योंकि उसके पहले वह न तन से परिपक्व होती न ही मन से।
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